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खनन क्षेत्र के लिए सतत विकास ढांचा

ऐतिहासिक रूप से, खनिज भंडारों के निष्कर्षण सदैव पूरे विश्व में प्रतिस्थापन सहित सामाजिक प्रभाव है और पर्यावरणीय संसाधन के विभिन्न अंश तक अपकर्ष में परिणत हुआ है। भारतीय खनन क्षेत्र इसके निष्पादन की तुलना में सतत विकास से संबंधित बहुत से मुद्दों पर गंभीर आलोचना का सामना करता रहा है।

राष्ट्रीय खनिज नीति की समीक्षा करने के लिए श्री अनवरूल होदा, सदस्य, योजना आयोग की अध्यक्षता में वर्ष 2005 में गठित की गई उच्च स्तरीय समिति ने यह सिफारिश की थी कि पर्यावरण प्रबंधन के कार्यान्वयन में सर्वोत्तम पद्धतियां लागू करने के अतिरिक्त सतत विकास में वैश्विक प्रवृत्तियों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है। उच्च स्तरीय समिति ने विशेष रूप से खनन, सर्वोत्तम पद्धतियों और ऐसे रिपोर्टिंग मानकों जिन्हें वास्तविक रूप से माना जा सके, में सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता के साथ खनिज विकास के प्रभाव का अध्ययन किया। 

समिति ने अंतर्राष्ट्रीय खनन और धातु परिषद (आईसीएमएम) और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (आईयूसीएन) में किए गए कार्य और किए जा रहे कार्य को हिसाब में लेते हुए भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से बनाए गए एसडीएफ का विकास करने की सिफारिश की है। एसडीएफ में सिद्धांत, पहलों को सूचित करना और अच्छी प्रथा के दिशानिर्देश शामिल होने चाहिए।

खान मंत्रालय द्वारा ईआरएम इंडिया प्रा. लि. को भारत में खनन क्षेत्र (गैर-कोयला, गैर-ईंधन) के लिए सतत विकास ढांचे के विकास के लिए नियुक्त किया गया था। एसडीएफ के विकास ने समिति की प्रतिबद्धता का पालन किया।

एसडीएफ के विकास की प्रक्रिया

अध्ययन के लिए विभिन्न हिस्सेदारों समूहों के साथ परामर्श और चर्चा, राज्य और केंद्रीय स्तर पर संबंधित विभागों की सहायता, उद्योग और सिविल सोसाइटी समूहों से फीडबैक और अभ्यावेदन शामिल करके सम्मिलित करने का दृष्टिकोण मुख्य विशेषताएं थीं। एसडीएफ को सतह की वास्तविकताओं, विरोधाभासों, मुद्दों, खनन के संबंध में आशाओं और अवबोधों तथा इससे संबद्ध विभिन्न कार्यकलापों द्वारा सूचित किया जाता है। परामर्श प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थीं:

i)      खान मंत्रालय (एमओएम), पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ), जनजातीय कार्य मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय (एमओआरडी), योजना आयोग, जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) और अन्य एजेंसियों सहित राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों के साथ परामर्श के बहुत से दौर;

ii)   गोवा, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, मेघालय, उड़ीसा और तमिलनाडु में सभी संबंधित हिस्सेदारों के साथ राज्य स्तर पर व्यापक परामर्शों के साथ स्थानीय समुदायों से खनन क्षेत्रों के आस-पास परामर्शों पर ध्यान केंद्रित करना;

iii)  संबंधित विभागों, भारतीय खान ब्यूरो (आईबीएम), उद्योग, सिविल सोसायटी समूहों, मीडिया, जिला प्रशासन आदि के प्रतिनिधियों को शामिल करके भुवनेश्वर (उड़ीसा), गोवा, शिलांग (मेघालय), उदयपुर (राजस्थान), बंगलौर (कर्नाटक) में क्षेत्रीय कार्यशालाएं;

iv)  पड़ोसी समुदाय (खान के निकट रहने वाले), उप ठेकेदार, खान कामगार, परिवहन एजेंसियां और अन्य समूहों के साथ परामर्श;

v)   अनुसंधान संस्थाएं (आईएसएम), भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), भारतीय खनन इंजीनियर संघ, खनन और व्यवसाय संघ (एफआईएमआई, सीआईआई) आदि के प्रतिनिधियों से चर्चा।

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